हिन्दी काव्य का प्रसार
हिन्दी काव्य का प्रसार
(हिन्दी दिवस पर विशेष)
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राष्ट्रीय एकता की निशानी,
हिन्दी है भारत की आत्मा।
हिंदी में काव्य कैसे रची जाती,
सुनिए तो कवि की जुबानी।
कवि जब अभिभूत होता ,
शब्द की अठखेलियों से।
पाठकों का मन परखने,
तन की भी परवाह न करता।
उठती आहें गीत बनकर,
छलके आँसू प्रीत बनकर
नवरस की कल्पनाओं से,
प्रकृति का श्रृंगार करता।
रिश्ते-नाते दुखित होते,
प्रियजनों की रुसवाईयों से ।
नवसृजन श्रृंगार हेतु ,
कर्मपथ विचलित न होता l
वो समझता अन्तर्मन में,
देश कब उन्नत बनेगा।
विज्ञान युग के साथ ही,
हिन्दी कब सुदृढ़ होगा।
काव्य कैसे सुन्दर सजेगा,
रस,छंद,अलंकार गूंथकर।
पाठकों के तरुण मन में,
सम्प्रेषण का हथियार बनकर।
साहित्य और इतिहास मिलकर,
देश की संस्कृति है गढ़ती।
काव्य यदि ज़ख्मित हुआ तो,
देश की सीमा सिमटती।
काव्य धरा की वो फिजा है,
रूह में है जा दहकती।
शब्दरूपी वाण बनकर ,
ब्रह्मास्त्र से ये प्रलय भी करती।
प्रेरणा से इस जगत के,
भाव चेतन को संवरती।
पर दिग्भ्रमित युवा मन ,
संधान इसका कर न पाता।
इन्टरनेट की गंदगियों से,
अंतर्मन ग्रसित जो होता।
दुश्मनों की चाल गहरी,
तरुण मन भ्रमित हुआ है।
आओ मिलकर भटके मनुज को,
हिंदी की महत्ता बतायें।
संस्कृति की अमूल्य धरोहर,
हिन्दी भाषा की विधा समझाएं ।
राष्ट्रधर्म की पुकार सुनें हम,
हिंदी को रोचक बनाएं।
सप्तसुरों में काव्य रचकर,
हिंदी काव्य संगीत गाएँ।
विलुप्त होती हिन्दी भाषा को,
फिर से हम रोचक बनाएं।
हिन्दी काव्य की विधा में,
अंत्याक्षरी को फिर से गाएँ।
राजभाषा हिन्दी को अब हम,
राष्ट्रभाषा का गौरव दिलाए।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -१४ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201