” हिंदी हमारी महान है “
किसी भाषा से गुरेज नही है
पर ये अंग्रेजी समझ में नही है
जो लिखा है जब वो पढ़ना ही नही
तो फिर उसे लिखना ही नही है ,
रखा है छप्पन भोग थाली में
पर देखो इसको पूरा ना खाना
थोड़ा खा कर बाकी का सारा
उन शब्दों की तरह फेंक देना है नाली में ,
हमारे संस्कार तो हिन्दुस्तान की हिन्दी जैसे हैं
जो लिखा है वो ही है पढ़ना
थाली में परोसा पूरा का पूरा है खाना
नही तो फिर हम हिंदुस्तानी कैसे हैं ?
हमारा सब कुछ कितना आसान है
स्वर – व्यंजन – बिंदु – अनुस्वार
संज्ञा – सर्वनाम – क्रिया – विशेषण
सबका अपना – अपना काम है ,
एक – एक अक्षर का बड़ा महत्व है
एक ही शब्द के है कई अर्थ
कहीं चूके तो तो फिर देखना
कैसे अर्थ का होता अनर्थ है ,
अलंकार कितने अलंकृत हैं
शब्दों के खेल खेल कर
करते हम सब को
देखो कैसे झंकृत हैं ,
नौ रसों का रस देखो
ये कैसे रस बरसाते हैं
इनकी पंक्तियों से इनको
सब पल में समझ जाते हैं ,
एक – एक रिश्ते का यहाँ तो
अलग – अलग नाम है
एक ही शब्द में सबको लपेटना
नही हिंदी का काम है ,
हर एक रिश्ते को देते हम सम्मान है
अपने नाम से ही वो जाना जाता
उसी हिसाब से वो मान पाता
तभी तो हमारी हिंदी इतनी महान है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )