हारा अपने आप से
हारा वह अपने आप से
करता जीत का आडंबर
रिश्ते नाते तोड़कर सब
करता सभी का निरादर
अहम अंहकार सब व्यर्थ
सभी बुराइयों का है मूल
दिल में चुभे तीखे सूल सा
नित घुटति निज तिरस्कार
बड़ों का कद है बौना करे
परवाह ना प्रतिष्ठा सम्मान
स्वयं का उल्लू सीधा करे
अपमान करे,ना हो सत्कार
समय यह जो गर बीत गया
रहेगा सदैव ताउम्र पछतावा
संगमन करले तू सब जन से
यही होगा जीवन पुरस्कार
जब होगा कब्रिस्तान प्रस्थान
तब खाली होगा तेरा हर हाथ
वैर,क्रोध,मोह,अहं यहाँ रहेगा
जाए मान,सम्मान,प्रेम सत्कार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत