हाय री गरीबी कैसी मेरा घर टूटा है
हाय री गरीबी कैसी मेरा घर टूटा है
दर दर भटकता मैं सारा जग रूठा है
भूखे है बच्चे मेरे भोजन नसीब नही
अपना पराया मेरे कोई भी करीब नही
पैरों में छाले दमके जूता भी टूटा है
दया कर दया के निधि तू भी रूठा है
जाऊं तो कहां जाऊं बता दे कन्हैया
जिंदगी गुजार मेरी पार कर दे नैया
कृष्णकांत गुर्जर धनौरा