हादसा
विषय _ हादसा
एक सफ़र की शुरुआत थी, जानता कोई नहीं था कि आखिरी वो रात थी
वक्त अपनी रफ्तार लिए चल रहा था
हंसी खुशी ये सफर निकल रहा था
अचानक जोरों की आवाज़ आई
और संग अपने वो काल को लाई
हंसी खुशी का सफ़र चीखने चिल्लाने में तब्दील हो गया
देखते ही देखते सब कुछ छिन भिन्न हो गया
बहुत ही डरावना वो मंजर था, लग चुका मानव के मौत का खंजर था
जीते जागते इंसान लाशों के ढेर हो गए
किसी की पहचान मिली और कोई तो जैसे अंधेरे में खो गए
जो था उस सफ़र में उसने किसी न किसी को तो है खोया
वो मंज़र याद करके हर दिल है रोया
उस रब से गुज़ारिश इतनी है कोई सफर में चले तो मंजिल तक पहुंच जाए
मगर कोई भी सफ़र उसे आखिरी मंजिल ना नजर आए।
रेखा खिंची ✍️✍️