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11 Feb 2024 · 1 min read

रेगिस्तान के महल तक

मैं खुश हूं
फिर भी कुछ चाह रही हूं
क्या
मुझे भी शायद नहीं पता
जिन्दगी पास है
फिर भी
इसे पाना चाह रही हूं
पानियों की धाराओं के बीच
बैठी हूं
फिर भी प्यासी हूं
समुन्दर के मध्य स्थित
एकांत में
किसी टापू के खंडहर
तक नहीं बल्कि
रेगिस्तान की
रेतीली मिट्टी से बने
किसी महल तक
ऊंट की पीठ पर बैठ
हिंडोले में झूलती, नाचती, गाती
हवाओं की सवारी खाती
पतंग की तरह आकाश छूती
पहुंचना चाह रही हूं।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
33 Views
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