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30 Jun 2018 · 1 min read

हाइकु

“दुल्हन”

(1)भोर की रश्मि
सतरंगी श्रृंगार
लाली चूनर।

(2)छितरा धूप
भोर की दुल्हन
धरा उतरी।

(3)सखियों संग
मंडप में पहुँची

(4)साँझ दुल्हन
नील झील में नहा
सजी सँवरी।

(5)चाँदनी सजी
तारों ने माँग भरी
चंदा बिंदिया।

(6)ओस की बूँदें
मखमली चूनर
धरा ने ओढ़ी।

(7)दुल्हन चली
छोड़ बाबुल गली
नम हैं आँखें।

(8)पहन जोड़ा
प्रीत रंग में रँगी
दर्पण देखे।

(9)निशा दुल्हन
तारे बने बाराती
चंद्रमा दूल्हा।

(10)फूलों की सेज
बैठी प्रतीक्षा करे
दुल्हन सजी।

(11)चला भास्कर
रथ पर सवार
सेहरा बाँधे।

(12)यौवनाभास
मिलने को आतुर
क्षितिज पर।

(13)हारसिंगार
उबटन लगाके
निखरा रूप।

(14)रीझता चाँद
इठला के चाँदनी
करे श्रृंगार।

(15)धूप नायिका
वात खिलखिलाता
करे ठिठोली।

(16)ओस से भीगी
हरियाली चुनरी
भू सकुचाए।

(17)कोमल गात
सिहर गई वधू
सुखद स्पर्श।

(18)व्योम मंडप
लाल चूनर ओढ़े
निखरी आभा।

(19)फूल पालकी
नज़ारे हैं बाराती
ऊषा दुल्हन।

(20)दसों दिशाएँ
खुशियों की बौछार
मंगलगीत।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
232 Views
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