हाइकु – डी के निवातिया
हाइकु
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दरख़्त झुके,
हिम अगवानी में,
पवन रुके !!
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हिम चादर
तानकर है लेटा,
पार्क में बेंच !!
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सर्दी का भूत,
हिम राहों पे घूमें,
बनके दूत !!
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लेन में खड़े,
बर्फ में नहाते है,
चीड़ के पेड़ !!
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बर्फ मुस्तैद,
घर बने पिंजरे,
इंसान कैद !!
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स्वरचित : डी के निवातिया