हां नारी हुं मैं
हां नारी हुं मैं,
दुनिया कि बन्धन कि कड़ी हुं मैं,
कहते हैं मेरा कोई अस्तित्व नहीं,
पर,
बिना मेरे यह दुनिया नहीं,
हां नारी हुं मैं,
तुलसी की वह मधुर वाणी हुं मैं,
कृष्णा कि मुरली की धुन हुं मैं,
गंगा कि धारा हुं मैं,
हां मैं नारी हूं,
ममता की मूरत हुं,
तो मृत्यु कि देवी भी मैं,
यम कि बहन तो नारायण की अर्धांगिनी हुं,
विधा, धन दौलत हुं
हां मैं नारी हूं,
कुंती, द्रोपदी, जीजा बाई, रूद्राणी हुं,
लक्ष्मी, मिरा, मैं हि तो सृष्टि रचना करने वाली हुं,
हां, हां मैं नारी हूं
लाज शर्म लुटते दरिंदे मेरे,
फिर कहते औकात में रहो,
इस विश्व कि हर एक बंधन तोङ कर,
जब थाम लुंगी तलवार में,
तब क्या सुधरेंगे यह दरिंदे,
नहीं नहीं ग़म नहीं मुझे अपने होने का,
हां हां मैं नारी हूं,
फुलवारी कि फुलों हुं,
जिसका रस चुस, अकेला छोड़ जाता है
वह स्वार्थि भौंरा,
हां हां मैं नारी हूं,
विश्व जिसे कहता है अबला,
वह मैं सबला नारी हूं,