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10 May 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . . . .

लँगड़ा दौड़े दौड़ में, गूँगा गाए गीत ।
बहरों की सब टोलियाँ , चलें दिशा विपरीत ।।

व्यथा पूछ उस वृक्ष से, जिसके टूटे पात ।
जिसकी डालें सह रहीं, तीव्र ताप आघात ।।

झूठ सहज लगता यहाँ, सुख दे यह भरपूर ।
आदत जो इसकी पड़े, बनता यह नासूर ।।

ताप भयंकर हो गया, बच कर रहना यार ।
तपती सड़कों पर हुआ, अब चलना दुश्वार ।।

सुशील सरना / 10- 5-24

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