हाँ, वह “पिता” है ………..
अंधियारे में खुद को जलाकर
पूत के पथ को करे उजियार,
अग्निपथ के शोलों में जलकर
रौशन करे जो घर संसार।
हँसते हँसते बच्चों की ख़ातिर
ज़हर जीवन में पीता है,
हाँ, वह “पिता” है
जो बच्चों की खुशी में जीता है।।
सेवा समर्पण बलिदान में
ममता से नहीं पीछे है,
पर ममता के आगे कभी ना
कोई उसको पूछे है।
ऐसे दुराचार को कभी ना
वह मन में संजोता है,
हाँ, वह “पिता” है
जो बच्चों की खुशी में जीता है।।
कहते हैं कठोर बहुत सब
पर तन्हाई में रोता है,
बच्चों पर कोई आँच आए तो
चैन से वह ना सोता है।
अपनी पूरी क्षमता से वह
काल से टकरा जाता है,
हाँ, वह “पिता” है
जो बच्चों की खुशी में जीता है।।
बच्चे आगे बढ़ जाएं तो
कामयाब खुदको माने,
उनकी चंचलता में ढूंढें
अपने बचपन सुहाने।
बेटी की शादी में खुदको
गिरवी रख मुस्काता है,
हाँ, वह “पिता” है
जो बच्चों की खुशी में जीता है।।
बच्चे की पहली यात्रा
होती उसके कांधे पर,
और अपनी अंतिम यात्रा को
चाहे बेटे के कांधे पर।
अपना अर्जित नाम व काम
न्योछावर कर जाता है,
हाँ, वह “पिता” है
जो बच्चों की खुशी में जीता है।।
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महेश ओझा
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गोरखपुर उ. प्र.