हाँ ! मैं भी मनाना चाहती हूँ नया साल .. ( कविता )
हाँ ! मैं भी मनाना चाहती हूँ नया साल ,
ताकि नयी खुशियों से हो जायुं निहाल .
बस शर्त इतनी , ना हो सिर्फ मेरे वास्ते ,
मेरे संग हो मेरा प्यारा वतन भी खुशहाल .
चहुंमुखी विकास के पथ पर चले तेजी से ,
मगर ऊँचे आदर्शों /विचारों की हो मिसाल .
कीचड़ ,दलदल नहीं ,और ना पथरीली राह ,
साफ़ -स्पष्ट मार्ग हो विकास की बेमिसाल .
फूल-फूल मुस्काएं और कलि- कलि महके ,
मेरे गुलशन का कोना -कौन होजाये निहाल.
मेरे देश के अन्नदाता को ना खोना पड़े जीवन,
उसका सब क़र्ज़ माफ़ हो ,गरीबी से न होई मुहाल .
हर हाथ में रोज़गार ,और हर मुख में अनाज ,
हाथ पसारे ना खडा हो किसी गरीब का नोनिहाल .
सबका साथ ,सबका विकास गर चाहते हो तो ,
तो सब के लिए मुफ्त हो शिक्षा औ स्वास्थ्य-लाभ .
मेरे वतन की बहनों,बेटियों ,बच्चियों और माताओं हेतु,
सुकूं से भरा सुरक्षित हो समाज का सारा माहौल .
संस्कारों को भूली ,भटकी हुई नयी युवा पीड़ी को ,
सही दिशा मिले ,और वह करें देश के विकास में कमाल .
है बस यह छोटी सी तमन्ना और यह सोच मेरी,
के सभी ग़मों को भूलकर , मेरे संग हर देशवासी मनाये नया साल .
बस इसी शर्त पर मैं मनाना चाहती हूँ नया साल ….