हाँ मैं किन्नर हूँ…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
…हाँ मैं किन्नर हूँ…
दोष किसको दूँ मैं
माँ को या बाप को
या अपने भगवान को
दोष क्या है मेरा
जो मैं पूर्ण नहीं हूँ…
…हाँ मैं किन्नर हूँ…
जन्म से ही मैं
माँ बाप का सरदर्द बनी
बचपन कैसे बीता
यह दर्द कैसे कहूँ
हर वक्त खून के आंसू
पीती हूँ मैं
शायद ऐसे ही रोज़ जीती हूँ मैं…
…हाँ मैं किन्नर हूँ…
आशा, अभिलाषा, विश्वास
अपने लिए कभी नहीं
समाज से ही उपेक्षित हूँ
और उसकी ख़ुशियों में
बस सरोवर हूँ मैं
हाँ रोज़-रोज़ मरकर
रोज़ जीती हूँ मैं…
…हाँ मैं किन्नर हूँ…
ना कोई हाथ बढ़ाता
ना कोई हमें अपनाता
पर लालची नज़रों में
हर शख़्स है बुलाता
देह समर्पित करते कितनो
दहलीज़ मुझे ना बुलाते
ऐसे तड़प कर किन्नर जीवन
बार-बार मर जाता…
…हाँ मैं किन्नर हूँ…