हाँ !भाई हाँ मैं मुखिया हूँ
! भाई हाँ हाँमैं मुखिया हूँ
किसी राष्ट्र या सरकारी तंत्र का प्रधान नहीं हूँ ,
ना ही किसी उच्च निजी संथान का मुखिया हूँ। कमर तोड़ मेहनत कर बाँटता घर खुशियाँ हूँ,
सिर्फऔर सिर्फ अपने परिवार का मुखिया हूँ ।।
हां !भाई हां मैं मुखिया हूँ।
एक मुखी रुद्राक्ष हूँ नाना मुखी रुद्राक्ष नहीं, साधारण सी धूरी हूँ वसुंधरा का अक्ष नहीं। चांदनीशुक्ल पक्ष हूँ अमावस्या कृष्णपक्ष नहीं, परिश्रम की धमक हूँ चांद बेगानी चमक नहीं ।।
हाँ !भाई हाँ मैं मुखिया हूँ।
काम आसान नहीं किसी घर का मुखिया होना,
खून पसीना एक करना दुबक सुबक सो जाना।
जमाने भर लड़ना यदि किसी खुशी को पाना,
कमरतोड़ रख देता नागवार नासमझ जमाना।।
हाँ !भाई हाँ मैं मुखिया हूँ।
मै धागा हूँ माला का जिसमें गुथे हुए हैं मनके, भांति- भांति खिले हुए हैं पर दबे पड़े हैं तनके।
उथल -पुथल मची सागर उड़ जाता भाप बनके,
मेरी कोई थाह नहीं है मेरे माथे बल तेज रमके।।
हाँ !भाई हाँ मैं मुखिया हूँ।
कोई सुध बुध नहीं है दीपक ज्यों मैं जलता हूँ,
झिलमिलाती धूप में सूरज की तरह तपता हूँ । खुद का प्रकाश मेरा जलती लौ ज्यू खपता हूँ ,
सतपाल सत्य की दो-वक्त की रोटी रोपता हूँ।।
हाँ!भाई हाँ मैं मुखिया हूँ।