हाँ प्राण तुझे चलना होगा
हाँ प्राण तुझे चलना होगा
जबतक घट में तार साँस का
जबतक जगमग दीप आस का
जीवन के बीहड़ जंगल में
हाँ प्राण ! तुझे चलना होगा ।
माना पग-पग लाखों काँटे
जहर बुझी शमशीरों जैसे
खड़े मार्ग में विषधर बनकर
पार्थ धनुष के तीरों जैसे
नहीं डगर पर प्यार फूल का
है केवल नफरत शोलों की
कहीं नजर आँधी की तुम पर
औ कहीं दाढ़ है ओलों की
फिर भी डर का शीश कुचलकर
झरनों ज्यों पर्वत से चलकर
हर बाधा को कफ़न उढ़ाकर
हाँ बीज ! तुझे फलना होगा ।
काम शूल का राह रोकना
राह न रोके तो क्या रोके ?
क्या पथ पर कालीन बिछाये
या सिरजे अवसर पग धोके ?
तूफानों से हँसी चाहना
पागलपन है कुछ और नहीं
पागलपन भी ऐसा शापित
किस्मत में जिसके भोर नहीं
थूक चाटती झुकी रीढ़ से
भीख चाहती तुच्छ भीड़ से
पहचान अलग रखने खातिर
हाँ मीत ! तुझे टलना होगा ।
मत रख आशा किसी श्वास से
मखमल जैसी हमदर्दी की
यह दुनिया है एक छलावा
जैसे धूप किरण सर्दी की
खेल यहाँ पर सिर्फ स्वार्थ का
और नहीं है कुछ खेल यहाँ
हर मानव मुज़रिम रिश्तों का
हर आँगन है इक जेल यहाँ
परवाह किये बिन कारा की
फिक्र किये बिन अँधियारा की
स्याह तमस के वक्षस्थल पर
हाँ दीप ! तुझे जलना होगा ।
अशोक दीप
जयपुर