हसरतें
हसरतें
हसरतें कितनी थीं अधूरी ही रहीं,
ज़िन्दगी खातिर जो जरुरी थी रहीं।
कल पे डाला किये ताउम्र उनको
शाम आ ही गयी हसरतें पूरी न हुई।
डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली।
हसरतें
हसरतें कितनी थीं अधूरी ही रहीं,
ज़िन्दगी खातिर जो जरुरी थी रहीं।
कल पे डाला किये ताउम्र उनको
शाम आ ही गयी हसरतें पूरी न हुई।
डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली।