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18 Mar 2020 · 1 min read

हवाओं की सारी नमी बँट चुकी है

बड़ी थी कभी पर अभी बँट चुकी है
कई टुकड़े होकर जमीं बँट चुकी है

लगा ले तू टोपी तिलक मैं लगा लूँ
ये पहचान भी मजहबी बँट चुकी है

इधर तेरी दुनिया उधर मेरी दुनिया
कि अब घर की दीवार भी बँट चुकी है

चलो खोज लें अब नया ठौर कोई
शहर की तो अब हर गली बँट चुकी है

ये तेरा मुबाइल ये मेरा मुबाइल
मुबाइल में गुम जिंदगी बँट चुकी है

शहर का बड़ा शुष्क मौसम है संजय
हवाओं की सारी नमी बँट चुकी है

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