हर दिन एक नई दुनिया का, दीदार होता यहां।
हर दिन एक नई दुनिया का, दीदार होता यहां,
एक गम जाता नहीं कि, दूसरा तैयार होता यहां।
उम्मीदें क्षणभंगुरता में लिपटकर, आती तो हैं,
पर ठहरे कैसे कि, हर पल में आँधियों से टकराव होता यहाँ।
हमदर्दी का स्वांग रचाकर, कई रिश्ते मिल तो जाते हैं,
पर स्वार्थ की छिछली धरा पर, पाँव उनके टिकते हैं कहाँ।
वादों-इरादों की पोशाक पहने ‘चाहत’ दिखती तो है,
पर साथ के नाम से हीं मुँह फेरती है, उनकी हिम्मत यहां।
‘भरोसा’ शब्द किताबों में बहुतायत सा बिखरा तो है,
पर ढूंढे कैसे कि, गुजरे जमाने का चलन अब दिखता है कहाँ।
मोहब्बत इस जमाने को भी, अपनी गिरफ्त में लिए बैठी तो है,
पर अब वफ़ा है कि, कफ़न ओढ़े सड़कों पर बिकती है यहां।
अंतर्मन की आवाजें कानों में कहीं दूर, गूंजती तो हैं,
पर शोर व्यवहारिकता का ऐसा है कि, संवेदनाएं दम तोड़ती हैं यहां।