हर तरफ़ आज दंगें लड़ाई हैं बस
२१२ २१२ २१२ २१२
हर तरफ़ आज दंगें लड़ाई हैं बस
आज भाषा बनी है ये’ अख़बार की
चोट खाया बदन यूँ तड़फता रहा
ज़ख़्म गहरे हुए हार से यार की
बेच दी बचपना आज उसने “शिवा”
क़त्ल कर दी गयी चाह लाचार की
सृजन~ अभिषेक श्रीवास्तव “शिवा”