बदलाव
हर अंधेरी रात के बाद
रोशन सुबह का आग़ाज़ होता है
हर ग़म के बाद फिर
खुशी का एहसास होता है ,
‘अमल -ए -इर्तिका में शाहकार
मिटते बनते रहते है ,
तवारीख़ के पन्नों में स्याह हर्फ़ भी
धुंधले पड़ जाते हैं ,
हर दौर के बाद नया दौर
आता – जाता रहता है ,
हर दौर इंसां को कुछ नई सोच और
ये सीख दे जाता है ,
इस जिंदगी का दस्तूर
बदलते रहना है ,
इसमें कोई ठहराव नहीं हमें वक्त के साथ
चलते रहना है ,
ग़र हम वक्त के साथ चलने ना पाएंगे ,
वक्त हमें ठोकर मार गुज़र जाएगा ,
हम इक ही मक़ाम पर बस ठहरे रह जाएंगे ,
ज़माना हमें वहीं छोड़ आगे निकल जाएगा।