हरे
सुन लेना मम अन्तस् की,
आर्त भरी उद्गार हरे।
कर देना इस मानस को,
अवलोकित अविकार हरे।।
प्रातः तुम हो सान्ध्य तुम्ही,
जीवन में साकार हरे।
भेद नहीं कर पाये वाणी,
वेदब्रह्म आकार हरे।।
रवि के तेज चन्द्र की आभा,
विद्युत के आधार हरे।
तमिस्रोम का प्रतिपल करते,
रहते हो संहार हरे।।
फूलों के सौरभ में वासित,
पुलकित ये संसार हरे।
विनती करती अन्तर्मन से,
कर देना उद्धार हरे।।
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी