हरे सपने
यादों के
आगोश में
मिलन की
आस में
रात भर वो
बैठी रही द्वारे
था
सीमा पर
सपनों का
सलोना
अंधेरा ही था
राज
उसके सपनों
का
चलीं
गोलियां
बड़ी धडकनें
हुआ
कुछ
अपशगुन
हरे सपने
मासूम के
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
यादों के
आगोश में
मिलन की
आस में
रात भर वो
बैठी रही द्वारे
था
सीमा पर
सपनों का
सलोना
अंधेरा ही था
राज
उसके सपनों
का
चलीं
गोलियां
बड़ी धडकनें
हुआ
कुछ
अपशगुन
हरे सपने
मासूम के
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल