हरमन प्यारा
हरमन प्यारा
हर वक्त आत्ममुग्ध सा रहता है,
अपने को हरमन प्यारा कहता है।
शक्ति का केंद्रीयकरण कर दिया,
जनमानस नफ़रत से भर दिया।
ग्रहण लोकतंत्र की रूह को लग गया,
वो झूठ से जन-जन को ठग गया।
पदों की गरीमां ख़त्म कर दी,
संस्थानों की महिमां ख़त्म कर दी।
गाहें-बगाहे मन की बात तो करता है,
पर वो जनसंवाद से डरता है।
वो प्रतिनिधि है उसे याद नहीं,
दर पर बैठी जनता से संवाद नहीं।
अरदास, विवेक बख़्से उनको दसम गुरु,
ताकि हो सके वो सच्चाई से रूबरू।