हरतालिका तीज की काव्य मय कहानी
शिव शक्ति के अमर प्रेम की, एक जीवंत कहानी है
कजरी हरतालिका तीज, दांपत्य की अमर निशानी है
एक बार त्रेता युग में, सती और शिव कैलाश पर बैठे थे
नर लीला कर रहे थे राम, जानकी विरह में रोते थे
मन ही मन शिव शंकर ने, श्री राम को प्रणाम किया
आश्चर्यचकित हुईं सती, मानव को शिव ने मान दिया
सती ने पूछा शिव शंकर से, नारी विरह में कौन रोता है
आपने जिसे प्रणाम किया, वह कौन आपका होता है
शिव शंकर ने कहा सती, यह तीन लोक के स्वामी हैं
वसुंधरा के पाप ताप हरने , वन के ये अनुगामी हैं
रावण ने सीता माता को, छल से आज चुराया है
इसीलिए ही दीनबंधु ने, ऐंसा लीला रूप दिखाया है
नहीं हुआ विश्वास सती को, ये तीन लोक के स्वामी है
ठान लिया परीक्षा लेने का, साधारण या अंतर्यामी है
सीता माता का वेश बना, श्रीराम के सम्मुख प्रकट हुईं
पहचान लिया सती माता को, करनी पर शर्मिंदा हुईं
कहां है भोलेनाथ हमारे, क्यों बन बन आप भटकतीं हैं
नाना रूप दिखाएं राम ने, सती मन में बहुत सकुचती हैं
मन ही मन घबराई सती, शिव समीप जब आईं
कैसी रही परीक्षा देवी, सती मन में बहुत लजाईं
नहीं परीक्षा लीनी भगवन, वे तीन लोक के स्वामी हैं
जान गई महिमा में उनकी, प्रभु हैं, अंतर्यामी हैं
अपनी योग माया से शिव ने, सती का सब करतब देखा
दुखी न हो देवी सती, शिव शंकर ने किया अनदेखा
अपने मन में शिव ने सोचा, अब भेंट सती संग न होगी
जिस शरीर को सिया बनाया, वह कैंसे अर्धांगिनी होगी
लग गए शिव राम भजन में, सती ह्रदय में अकुलाई
आकाश मार्ग से देवों के विमान, उड़ते दिए दिखाई
सती ने पूछा शिव शंकर से, यह देव कहां को जाते हैं
शिवशंकर ने कहा सती ,देव तुम्हारे पितृग्रह को जाते हैं
आपके पिता प्रजापति ने, यज्ञ एक ठाना है
आमंत्रण है सब देवों को, हम से द्वेष ही माना है
सती ने कहा प्रिय नाथ सुनो, हम भी इस यज्ञ में जाएंगे
माता पिता के पुण्य के भागी, हम भी तो बन जाएंगे
बिना बुलाए जाना सती, हर हाल में उचित नहीं है
आदर सम्मान की बात है यह, साधारण बात नहीं है
होनहार बस सती ने, शिव की बात न मानी
झूठें मुंह दक्ष न बोले, सती बहुत पछतानी
सह न सकीं अपमान शंकर का, अग्नि बीच समानी
हाहाकार मच गया वहां पर, दक्ष का यज्ञ विध्वंस किया
शिव शंकर ने भरे क्रोध में, दक्ष का मस्तक छेद दिया
लेकर मृत शरीर सती का, शोक मग्न थे शिव शंकर
डोल रहे थे वसुंधरा पर, तीन लोक के अभ्यंकर
महाविष्णु स्थिति देख, शव का विच्छेदन कर डाला
जहां-जहां गिरे अंग सती के, शक्ति पीठ बना डाला
कालांतर में देवी ने, हिमालय के यहां अवतार लिया
पार्वती के रूप में जन्मी, धरती को उपहार दिया
एक दिवस श्री नारद मुनि, हिमालय महल पधारे
प्रसन्न हुए हिमवान और मैना, आदर से बैठारे
कांति वान देख कन्या को, नारद ने वचन उचारे
निस्पृह योगी और दिगंबर, अजन्मा कन्या को धारे
सुनकर मुनिवर की वाणी, मात-पिता घबराए
कैंसा भाग मिला कन्या को, मन अफसोस जताए
नारद बोले ऐसे गुण तो, शिव शंकर में मिलते हैं
नाम सुना शिव शंकर का, कन्या हृदय फूल खिलते हैं
इसी समय तारकासुर ने, तीनों लोक में आतंक मचाया
शिव का अंश ही मारेगा, ब्रह्मा से वरदान है पाया
शिव शंकर बैठे थे महासमाधि में, कैसे उन्हें जगाएं
कैसे करें शादी शिव की, सोच समझ ना पाए
शिव की महासमाधि तोड़ने, कामदेव को उकसाया
चला गया कामदेव जगाने, शिव ने उसे जलाया
कामदेव की पत्नी रति ने, शिव को दर्द बताया
शिव के ही वरदान से रति ने, कृष्ण पुत्र को पाया
सब देवो ने मिलकर शिव को, अपना मंतव्य बताया
पैदा हो तारक मारन हारा, विवाह प्रस्ताव रखबाया
मान गए शिव शंकर, नारद को प्रेम परीक्षा को भेजा
पार्वती का मंतव्य जानने, प्रस्ताव विष्णु संग भेजा
प्रसन्न हुए हिमवान और मैना, मन ही मन हर्षाए
मान गए प्रस्ताव विष्णु संग, विवाह अति मन भाए
पता चला जब पार्वती को, मन ही मन सकुचाई
अपने मन की बात बताने, सखी के घर पर आई
मेरी है सखी प्रीत पुरानी, मैंने शिव को चाहा है
मेरी इच्छा के विरुद्ध पिता ने, प्रस्ताव बनाया है
चली गई सखी संग माता, वन में तपस्या करने को
अपने तप और प्रेम से, शिवशंकर को रिझाने को
सही धूप ठंड और बर्षा, निर्जला व्रत में लगी रहीं
मनचाहा वर पाने माता, घोर तपस्या में डटी रहीं
डोल गया सिंहासन शिव का, भाद्रपद शुक्ल तृतीया प्रकट हुए
मनचाहा वर मांगो प्रिय, शिव के मुख से उदगार हुए
पार्वती ने शिव सम्मुख हो, अपनी इच्छा दोहराई
तथास्तु कहा शिव शंकर ने, उमा हृदय में हरषाई
उमा को ढूंढते हिमवान और मैना, उस जंगल में आए
मान गए बे बात उमा की, मन ही मन बहुत लजाए
धूमधाम से शिव शंकर का, पार्वती से पाणिग्रहण हुआ
सभी देवगण हर्षाए, उत्सव और आनंद हुआ
कालांतर में कार्तिकेय ने, शिव के घर में जन्म लिया
मारा जिनने तारक को, तीनों लोकों पर उपकार किया
हरितालिका तीज अमर प्रेम की, ऐंसी अमर कहानी है
दांपत्य प्रेम मनचाहा वर, पाने की आज निशानी है
सुख सौभाग्य समृद्धि पाने, सारी महिलाएं व्रत करतीं हैं
उमा महेश्वर की पूजा से, मनोकामना पूरन करतीं हैं
उमा महेश्वर की जय
हरतालिका तीज मैया की जय
सुरेश कुमार चतुर्वेदी