हम सहिष्णुता के आराधक (गीत)
हम सहिष्णुता के आराधक (गीत)
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हम सहिष्णुता के आराधक, गायक हैं हम प्यार के
(1)
हमने सर्वप्रथम वसुधा को एक कुटुंब बताया
हमने आपस में भाईचारा जग को सिखलाया
हमने ही यह कहा धर्म को ही परहित कहते हैं
हमने ही यह कहा ब्रह्म हर प्राणी में रहते हैं
हम अतुल्य भारत के वासी, राही शिष्टाचार के
(2)
इस माटी में हुए बुद्ध थे, शान्ति ध्वजा फहराई
यहीं अहिंसा परमो धर्मः , देता रहा सुनाई
जियो और जीने दो का, जिसने सन्देश सुनाया
महावीर वह तीर्थकर, इस धरती पर ही आया
हमने दुनिया को जीता है, बिना तीर तलवार के
(3)
हमने उपनिवेश दुनिया में, कहीं नहीं बनवाया
कोई देश हमारा बोलो, कब गुलाम कहलाया
हम समरस समाज की रचना, की राहों पर चलते
भेदभाव मानव-मानव के, भीतर हमको खलते
यहाँ सदा मिल-जुलकर रहते, लोग विभिन्न विचार के
(4)
समय आ गया है आओ, आँखों-आँखों में झाँकें
गलती की तुमने या हमने, आओ मिलकर आँकें
अगर शिकायत ही की तो, भारत फिर बँट जाएगा
आगजनी दंगे कर्फ्यू में, सिर हर कट जाएगा
हमें बचाना है भारत को, घावों से संहार के
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451