हम मनोरंजन का साधन नहीं (पालतू पशुओं की गुहार )
हम मनोरंजन का साधन नहीं,
मगर तुम हमें इससे अधिक नहीं जानते।
हम तुम्हारे घर की शोभा बढ़ाएँ ,
बस इसीलिए तुम हमें हो पालते ।
हमारे गले में अपने नाम का पट्टा डाल ,
हम पर अपना अधिकार जमाते ।
फिर बड़े प्यार से पालन-पोषण कर ,
हमें अपना आदि हो बना लेते ।
और जब मन भर जाए तो किसी ,
नुक्कड़ पर बेसहारा छोड़ आते।
हम उस समय खुद को लुटे हुए ,
ठगा सा महसूस है करते ।
तुमने तो हमें समझा मनोरंजन का साधन ,
मगर हम भोले ,मासूम प्राणी तुम्हे,
अपना खुदा है समझ लेते।
क्या यह हमारी भूल थी की तुम हो क्या ,
,और हम तुम्हें क्या है समझ लेते ।
यदि मान लो हम तुम्हारे घर जीवन पर्यंत तक रहें,
तो भी तुम अपने जीवन से हमें नहीं जोड़ते ।
अपने दुख-दर्द, गम-खुशी का भागीदार ,
तुम हमें नहीं बनाते ।
सोचते होंगे ! ”पशु है क्या कर लेगा !”
जबकि तुम हमें एक बार गले से लगा लेते ,
तो हम में भी धड़कता हुआ दिल पाते ।
हम हैं हाड़ मांस के ,जीते जागते जीव,
अपने जैसे जज़्बात तुम हम में भी पाते ।
फिर कभी जीवन से निराश होकर ,
मृत्यु को गले लगाने की ना सोचते ।
हमारा ख्याल आते ही कदम तुम्हारे ,
रुक जाते ।
मगर ऐसा तभी हो सकता था जब तुम हमें ,
अपने जीवन का सच्चा साथी समझते।
क्योंकि हम भी ईश्वर की कृति जीव हैं,
वो तो हमें अपना अंश समझते हैं ,
मनोरंजन का साधन नहीं समझते।