हमें पकड़ते नहीं
हमें पकड़ते नहीं दुर्व्यसन,
हम ही इन्हें पकड़ते हैं।
ढोंग छोड़ने का करके हम,
प्रतिपल इन्हें जकड़ते हैं।।
अपनी लाख बुरी आदत के,
दुर्गुण तो गाते हैं हम।
लेकिन इच्छाशक्ति न हो तो,
छोड़ नहीं पाते हैं हम।।
इच्छाशक्ति अगर हो हममें,
हर दुर्व्यसन छूट जाता।
और व्यक्ति दुर्व्यसन रहित हो,
प्रमुदित जीवन जी पाता।।
आओ अपने दुर्व्यसनों को,
जब ज्योंही पहचानें हम।
त्योंही उनको दूर भगाने,
की निज मन में ठानें हम।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी