हमारा मकसद
शब्दों तक में परिवर्तन आया,
अर्थ बदलने सा लगा यहीं हैं|
सच कहा है किसी ने,. कि दगा किसी का सगा नहीं है|
बदलते परिवेश में भी
संघर्ष जारी रखना है|
अबतो मन का यह कहना है|
सो रहा मानव गुण गहन नींद में,
पर ऐसा कहाँ कभी हुआ कि जो सोया वो जगा नहीं है|
कहीं तो होगी मानवात्मा
जिंदा,
कुटिल कर्म में बनी परिंदा|
मानव में मानव अंश का
भाव जगाना|
परिंदे को है हंस बनाना|
मनुज मनुज का यह करतब है|
यही पाठशाला का मकसद है|
डा पूनम श्रीवास्तव {वाणी}