हमसाया
क्यों लहरों से मेरी, आकर तू टकराता है,
मैं तो टूटती हीं हूँ, साथ मेरे तू भी टूट जाता है।
रूठी सबसे हूँ मैं, क्यों तू हीं आकर मनाता है,
मेरे दर्द की गहराईयों से, अपने दर्द को जोड़ जाता है।
सपने जो छोड़े थे पीछे, साथ अपने लेकर आता है,
बेवज़ह सी उमीदों को मेरी, अपने एहसास से जगाता है।
बद्दुआओं से दुआओं की रौशनी, छीन लाता है,
और जो अंधेरों में चलती हूँ मैं, तो मेरे साथ गुम हो जाता है।
अगर सतातीं हैं ठंडी हवाएं, तो लिहाफ़ खुद को मेरा बनाता है,
तू क्यों बारिशों में थाम कर, मेरा हाथ भींग जाता है?
सांसें जो रुकतीं है मेरी, अपनी साँसों को गंवाता है,
मेरे हर धड़कन पर क्यों, अपनी जान तू लूटा आता है?
ख़ामख़ाह मेरे अश्क़ों के साथ, तू अपने अश्क़ बहाता है,
बिछड़ती हूँ जो मैं खुद से, तो मुझे ढूंढ कर क्यों लाता है?
जो बोलती नहीं मैं कभी, क्यों आवाज़ खुद को, मेरी बनाता है,
और मेरे ख़ामोश लम्हों में, अपने शब्दों को भूल जाता है।
ये कैसे नसीब से, वो ईश्वर मुझे मिलाता है,
जानती हूँ साथ चलना नहीं है, फ़िर क्यों हमसाया बन, साथ मेरा तू दे जाता है?