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29 Jan 2024 · 1 min read

हड़ताल एवं बंद

यही तो है हड़ताल एवं बंद की दृश्यावली,
नाल वाले बूटों से कुचली कली.

कणों में बिखरे फूल,
आग, पत्थर,मिटटी और धूल.

घायल एवं सिसकते तडपते ईन्सान,
टूटते सीसे जलती हुई दुकान.

सड़कों पर बिखरे पत्थर,
सुनसान सड़क बंद हुए घर.

यह स्थिति नहीं किसी के पसंद की,
प्रभावित सोच नहीं सकता हड़ताल और बंद की.

परिणाम यह किस का है ध्यान नहीं जाता है,
इनके परिणामो को बहुत उछाला जाता है.

इनको रोकना किस का काम है?
क्या ‘मूल’ पर आघात नहीं हो सकता जिसका यह परिणाम है?

भटकाव नहीं यह अधिकारों की लड़ाई है,
अधिकारों के लिए लड़ना क्या बुराई है?

यदि ख़त्म ही करना है तो विषमता को करो,
हम अपना कर्तव्य पूरा करें, आप बिन मांगे अधिकार दो.

हक़ मिलने पर कोई नहीं चाहेगा कि लड़ाई हो,
शांति भंग और तोड़-भोड़ जिसकी ना कभी भरपाई हो.

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