हजारों खिलजी
हजारों खिलजी (यह कविता पद्मावती फ़िल्म का हो रहे विरोध के समय लिखी गयी थी)
हजारों खिलजी अपनी
नुकीली दाढ़ी खुजलाते हुए-
हजारों पद्मावतियों को
उनके ही अन्तर्हृदय में जलती हुई
अग्नि में प्रतिदिन, प्रतिक्षण …
जौहर करने के लिए
बाध्य कर रहे हैं।
शिर्फ़ एक पदमावती के लिए
विरोध जताने वालों में भी
अनगिनत ख़िलजी…
छद्मभेष में सम्मलित हैं,
और मौका मिलते ही
यही ख़िलजी —
पद्मावतियों का ह्रास करते हैं।
बड़ी निराली प्रक्रिया है-
समाज कहे जाने वाले समूह की,
जो वास्तव में सद्चरित्र हैं,
वो न तो मंद बुद्धि उपद्रव में
सम्मलित हो विरोध जताने का
नाटक करते हैं ,
और न ही पद्मावतियों के
पतन का विचार मात्र भी…।