हक से
बाप दादाओं के हक से कभी तहज़ीब हुआ करते थे
पहले के लड़के ज़बाँ से कितने अलीम हुआ करते थे
कैसे बताऊँ वो पल कितने हसीन गुज़रे जीवन में मेरे
जब ग़ज़ल लिखने को खुद ही इक रदीफ़ हुआ करते थे
सामने में ना करते थे मुहब्बत किसी और के मुहब्बत से
हाँ कुछ वक़्त तक ज़माने में अच्छे रक़ीब हुआ करते थे
उपजे उल्फत के फसलों में कई हीर राँझे से इसी जमाने
इक वक़्त क़ल्ब इश्क बोने उपजाऊ ज़मीन हुआ करते थे
कौन करें गुणगान सच्चे दिल से उस रब का यहाँ यारों अब
ये वो सदी जहाँ राम रहीम से है म’गर कबीर हुआ करते थे
@कुनु