हक बोलते हैं सच पे निदामत नहीं करते
हक बोलते हैं सच पे निदामत नहीं करते।
दिल तोड़ दिया फिर भी शिकायत नहीं करते।
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मुझको जो मिला है मुकद्दर की बात है।
हम तो पराई चीज पर हसरत नहीं करते।
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हासिल करेंगे एक दिन मेहनत से मंजि़लें।
बर्बाद हम मां बाप की दौलत नहीं करते।
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अब दोस्त भी शामिल है दुश्मन की सफो में।
यह सोचकर नासाज तबीयत नहीं करते।
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आंखों में उसका प्यार है और दिल में ऐतबार।
फिर भी हम तेरे न पर शिकायत नहीं करते।
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अल्लाह की वह़दानियत ईमान मेरा है।
हम इसलिए गै़रों की इ़बादत नहीं करते।
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नबियों की है मीरास “सगीर” इल्म और अमल।
इसके सिवा हम कोई वसीयत नहीं करते।
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