हंसगति छंद
#स्वैच्छिक_छंद_लेखन
#तिथि – ३/८/२०१९
#दिवस – शनिवार
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छ्न्द – हंसगति ( २0 मात्रा ) शिल्प विधान — 11,9= 20 प्रथम चरण ११ मात्रा ,चरणान्त २१ से अनिवार्य । (इस प्रकार दोहे का सम चरण सिद्ध होता है) कुछ विद्वान प्रथम चरणान्त में त्रिकल (12/21/111) को अनिवार्य मानते हैं मगर दोहा के सम चरणान्त जैसा २१ की बाध्यता नहीं। द्वितीय चरण का आरम्भ त्रिकल (१११/१२/२१) से एवं अंत गुरु गुरु/वाचिक अनिवार्य।यति के पहले और बाद में त्रिकल अनिवार्य।
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“छंद हंसगति”
बम बम भोले नाथ, भक्त सब बोले।
उर इच्छा तेरे द्वार, आन सब खोले।
गंगा जल भर आज, भक्त आये है।
आस्था पूरित पुष्प, संग लाये है।।
श्रावण का यह मास,बड़ा ही पावन।
रिमझिम बरसे मेघ,लगे मनभावन।
बरसे जब जब मेघ, कृषक हर्षाये।
गर्मी का हो अंत, सभी मुस्काये।
सजना घर से दूर, विरह तड़पाए।
सजनी बिन हर रात, सजन तरसाये।
जगी विरह की आग, अगन सुलगाये।
सजन मिलन की आश, विरह बरसाये।
#स्वरचित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”