“हँसना”
हँसने में कोई मनाही नहीं
मगर हँसकर कभी चिढ़ानी नहीं
सम्भव होता यह तभी
जब दिल पर मुर्दानगी नहीं
हँसना भी जिन्दादिली है
कौन कहता इसमें दीवानगी नहीं
ये रब की एक इनायत है
हँसना पाक है ना कि गन्दी
है ये ऐसा धन यारों
छाती ना कभी कोई मन्दी।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति