स्वार्थ
आज के समाज में रिश्ते नाते,
शिक्षा, प्यार- मोहबत ये सब नाम के हैं।
इनके नाम पर होते आज कल व्यापार भी है।
इन्सान को किसी भी बात से,
कोई फर्क न पड़ता है।
क्योंकी आज हर इन्सान का,
स्वाभिमान कोडियो के मूल बिकता है।
“विद्या सर्वोपरि धन है” ये मात्र,
किताबों के पन्नों में दब गया है।
क्योंकी अब अब इसके नाम पर,
व्यापार चल रहा है।
बुद्धि भ्रष्ट कर दी इस स्वार्थ ,
शब्द ने लोगों की।
महज़ इसलिए क्योंकी आज,
आज उनकी जेंबें भरी हैं नोटों से