स्वामी जी
“हाँ, तो भक्तों, जब दुःशासन ने देवी द्रौपदी का चीर हरण करने के लिए, भरी सभा में उसकी साड़ी खींचना आरम्भ किया… तो” स्वामी जी इतना ही बोले थे कि सामने से पुलिसवालों के एक जत्थे को अपनी ओर आता देख रुक गए। कुछ पुलिसवालों ने पिस्तौल थाम रखी थी, इसलिए आस-पास मौजूद स्वामी जी के अंगरक्षकों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। स्वामी जी को सुनने आई जन समर्थकों की भारी भीड़ आश्चर्यचकित थी! किसी अमंगल, आशंका के भय से समीप ही उपस्थित स्वामी जी के कुछ चेले-चपाटे स्वामी जी की जय-जयकार करने लगे, ताकि स्वामी जी के पक्ष में माहौल बनाया जा सके।
“स्वामी जी, आपको गिरफ़्तार किया जाता है।” जय-जयकार के शोर-शराबे के मध्य इंस्पेक्टर मुकुन्द सिंह ने हथकड़ी स्वामी जी की ओर बढ़ाते हुए कहा।
“क्यों?” स्वामी जी ने इतना कहा था कि मुकुन्द सिंह ने द्वार की तरफ़ इशारा किया। वहाँ लाल साड़ी में एक युवती खड़ी थी। जिसे देखते ही स्वामी जी के चेहरे का रंग उड़ गया।
“मेनका ने आप पर गम्भीर आरोप लगाए हैं।” मुकुन्द ने कठोर शब्दों में कहा।
“सब झूठ है, यहाँ के विधायक दिनेश शर्मा को फ़ोन गलाओ।” स्वामी जी बोले।
“शर्मा जी भी जेल के अन्दर हैं, उन पर भी आरोप लगाए हैं। उनके बाद ही आपको गिरफ़्तार करने का साहस जुटा पाए हैं हम लोग!” मुकुन्द ने मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए कहा, “चुपचाप गिरफ़्तार हो जाओ, वरना आपके भक्तजनों के बीच आप को राम से रावण बनते देर न लगेगी स्वामी जी।”
“भक्तों किसी महत्वपूर्ण कार्य से मुझे फिलहाल कहीं जाना है। महाभारत की शेष कथा फिर किसी अन्य दिन आपके समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।” माइक पर उपस्थित भीड़ को यह आश्वासन देकर स्वामी जी पुलिस जत्थे के मध्य चले तो भक्त जनों के मध्य उनकी पुनः जय-जयकार होने लगी।
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कुछ ही देर में मीडिया द्वारा पूरे विश्व में ये ख़बर आम हो गई। स्वामी जी पर किसी मेनका नामक युवती ने बलात्कार का आरोप लगाया है! पता नहीं ये सही था, या आधारहीन! क्योंकि प्रभु राम की तरह पूजनीय स्वामीजी को अब भी कोई रावण मानने के लिए तैयार न था। फ़िलहाल देश-विदेश में फैले हुए उनके समस्त अनुयायियों में हडकंप मच गया।
“ये सब झूठ है।”
“साजिश है।”
“धोका है।”
“छलावा है।”
“षड्यंत्र है।”
“जालसाज़ी है।”
“सरासर ग़लत है।”
स्वामी जी सहित उनके तक़रीबन चाहने वालों ने मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में महीने भर तक कुछ इसी तरह के मिले-जुले बयान दिए व अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त कीं।
देश में ही नहीं वरन पूरे विश्वभर में तरह-तरह की ख़बरों और अफवाहों का बाज़ार गरम था। जिसके जी में जो आये मुँह उठाये वह कुछ भी बोल रहा था और आमजनों के मध्य पिछले दो-तीन वर्षों की घटनाएं ताज़ा हो उठीं। एक के बाद एक साधु-बाबाओं का पर्दाफाश हो रहा है। आसाराम, रामरहीम, रामपाल आदि बाबाओं के हश्र के बाद अब स्वामी जी से जुड़ी बलात्कार की इस घटना को भी इसी कड़ी की अगली श्रृंखला माना जाने लगा। कुछ की धर्म-कर्म के प्रति आस्था डगमगाने लगी। तो कुछ को ये सब ढ़ोंग और पाखण्ड जान पड़ने लगा। पिछले दिनों जब हरियाणा से रामरहीम की गिरफ़्तारी हुई थी तो लोग चटकारे लेकर हनीप्रीत और रहीम की प्रेम कथाओं के क़िस्सों को दोहरा रहे थे। वो हनीप्रीत जिसे राम रहीम मुंहबोली बेटी कहता था और उसके पति को अपना दमाद बताता था। छी:! उसी हनीप्रीत के साथ गुप्त कमरों में रंगरलियाँ मानाता था। ठीक ऐसे ही अब नए क़िस्सोँ में नायक-नायिका बदल गए थे और हनीप्रीत की जगह मेनका ने ले ली थी और रामरहीम की जगह अब नायक के रूप में स्वामी जी को पिरोया जाने लगा। ऐसी अनेकों दास्ताने अब मीडिया, समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से स्वामी जी की रसीली कहानियों के मध्य से सुनने वालों को रोमांचित करने लगीं थीं। कुछ तो स्वामी जी को आसाराम का नया अवतार बता रहे थे। वो आसाराम जो स्वयं को कृष्ण अवतार कहकर आश्रम में उपस्थित स्त्रियों-किशोरियों को अपनी गोपियाँ-सखियाँ मानकर उनके साथ रंगरलियाँ मनाता , रासलीलाएँ रचता। अच्छा होता, यदि आसाराम हैलीकाप्टर दुर्घटना में मारा जाता। जिस पापी के उस दुर्घटना में बचने पर उसके हज़ारों-लाखों भक्तों ने मिठाइयाँ बांटी थीं। ऐसे विधर्मियों, कुकर्मियों को मौत भी तो नहीं आती! विधाता दीर्घ जीवन देता है। अपने सेवादारों से ग़लत काम करवाना, ये पेशा बन गया इन ढोंगी धर्म गुरुओं का। अब आसाराम के रूप में स्वामी जी को नया कृष्ण अवतार बताकर पेश किया जा रहा था। और गोपियों-सखियों के रूप में उनके आश्रम की तमाम स्त्रियों और किशोरियों के देखा जा रहा था।
एक रोज़ आश्रम में मौजूद स्वामी जी के दो सेवक सोनू और मोनू चरस का सेवन करने के उपरान्त बड़बड़ा रहे थे।
“सब शाला ढोंग-ढकोसला और मोहमाया है।” सोनू बोला।
“और नहीं तो क्या?” मोनू ने चिलम का अगला कस खिंचा, “स्वामीजी ही उस छिनाल मेनका को सिर पर चढ़ाये थे।”
“ठीक कह रहे मोनू भाई।” सोनू झूमता हुआ बोला, “मैंने भी स्वामी जी को आगाह किया था। ये औरत नहीं नागिन है एक दिन सब मान-यश डस लेगी। पर स्वामी जी पर तो उसका नशा ऐसा चढ़ा था जैसे कभी सचमुच की मेनका ने महाऋषि विश्वामित्र का तप भंग किया था।”
“उस मेनका ने महाऋषि को डुबोया इस मेनका ने ढोंगी कलयुगी स्वामी जी को।” कहकर मोनू ने ज़ोर से ठहका लगाया।
“वो कार्ल मार्क्स ठीक कहता था। ” सोनू बोला।
“कौन कार्ल मार्क्स बे?” मोनू हैरान था।
“अबे स्कूल-कॉलेज में नहीं पढ़ा तूने अपने बाप के बारे में!” सोनू गुस्से में भर गया, “सबसे बड़ा क्रान्तिकारी हुआ है ससुर!”
“हाँ, हाँ! सुने हैं! सुने हैं सोनू भाई नाराज़ कहे होत रहे।” कहकर मोनू नशे की हालत में देर तक अपनी मुण्डी हिलाता रहा।
“धर्म अफ़ीम का गोला है।”
“सही बोला था, तभी तो हमका रोज़ सेवन को मिल जात है अफ़ीम!” अपने पीले दाँत दिखाते हुए ज़ोर से हंसा मोनू।
“अबे गधे उसके कहने का अर्थ समझ, जो जितना कट्टर, उतना बड़ा अफ़ीमची। जो जितना अन्ध, वो उतना बड़ा नशेड़ी।” सोनू ने इतना ही कहा था कि मोनू खर्राटे मारके ज़मीन पर ही सोने लगा। ये देखकर सोनू को भी नींद आने लगी।
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मीडिया में बलात्कार की शिकार मेनका ने जो बयान दिया था। उसके आधार पर स्वामी जी के भव्यतम आश्रम पर पुलिस और सी.बी.आई. की के रेड पड़ी थी। आश्रम से अनगिनित आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई! जैसे—हिरोइन, अफ़ीम, चरस, गंजा, स्मैक और विलायती शराब का बहुत बड़ा भण्डार सीलकर दिया गया। इसकी कीमत अंतर्राष्टीय मुद्राकोष में अरबों-खरबों डालर आँकी गई थी। देह व्यापार में लिप्त आश्रम की सैकड़ों युवतियां, जिनमें से अधिकांश विदेशी थीं, बरामद की गईं। उनमें से कुछ काल-गर्ल्स के बयान भी चौंका देने वाले थे। सत्तारूढ़ व विपक्ष के अनेक मंत्रीगण इन गैरकानूनी कामों में स्वामीजी के बराबर के भागीदार और सहयोगी बताये गए थे। इसी कारण अब सरकार के गिरने का भी ख़तरा पैदा हो गया था। क्या आम आदमी? क्या राजनेता? सभी की नींद उड़ गई थी! स्वामी जी और सरकार के मन्त्रियों की तरफ से पुलिस और सी.बी.आई. को खरीदने की काफ़ी कोशिशें कीं गईं मगर सब व्यर्थ क्योकिं मामला मीडिया में काफ़ी तूल पकड़ चुका था इसलिए कोई भी अपनी छवि को ख़राब करने के मूड में नहीं था।
“अबे स्वामी के बच्चे, तूने मेनका को गोली क्यों न मार दी?” विधायक दिनेश शर्मा जो स्वामी जी के साथ ही सी.बी.आई. की कस्टडी में था यकायक भड़क कर बोला, “आश्रम में इतनी औरतें और लड़कियाँ थीं, तुझे आशिक़ी के लिए वही छिनाल मिली थी!”
यह सुनकर भी स्वामी जी चुपचाप थे। अगल-बगल में खड़े कुछ सीबीआई वाले हँस रहे थे।
“साहब, इश्क़ चीज़ ही ऐसी है।” सीबीआई प्रमुख उमाकान्त देसाई बोले, “वो क्या कहावत है हिन्दी में—दिल आया गधी पे…”
“….. तो परी क्या चीज़ है?” इंस्पेक्टर मुकुन्द ने वाक्य पूरा किया। जो इस मामले में पहले दिन से ही सीबीआई वालों का साथ दे रहा था।
“ये तो गए बिन भाव के! न खुदा ही मिला, न वसले सनम!” विधायक दिनेश शर्मा स्वामी जी से खिन्न थे, “इनकी फ़जीहत तो इश्क़ के कारण हुई मगर मेरी फ़जीहत अकारण हुई। मेरा राजनैतिक सफ़र ख़त्म हो गया।”
“विधायक जी, इतनी जल्दी हार मत मानो! कोई न कोई रास्ता तो निकलेगा इस विपदा से बचने का। आख़िर अरबों-खरबों का मामला है।” उमाकान्त बोले, “फिर आप अकेले थोड़े फँसे हैं! कई और मन्त्रियों, राजनेताओं का नाम भी उछला है इस मामले में।”
“मीर की ग़ज़ल का एक मतला इस मौक़े पर अच्छा-ख़ासा फिट बैठ रहा है। अगर उमाकान्त सर जी की इज़ाज़त हो तो सुना दूँ।” मुकुन्द ने मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए कहा।
“इरशाद।” उमाकान्त ने इज़ाज़त देते हुए कहा।
“इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या? आगे-आगे देखिये होता है क्या?” मुकुन्द ने बड़ी नज़ाकत से ये शेर पढ़ा तो सीबीआई के कई लोग वाह! वाह!! कर उठे, मगर स्वामी जी और विधायक जी अब भी मुँह लटकाये बैठे थे।
“ये खुदा-ए-सुख़न मीर-तक़ी-मीर का लिखा है।” उमाकान्त हैरानी से भरकर बोले, “भई वाह! हम तो ग़ालिब के मुरीद थे, अब तो मीर का दीवान भी पढ़ना पड़ेगा।”
“खूब मज़े ले रहे हो दोनों!” विधायक दिनेश शर्मा जी बोले, “ले लो….. ले लो…. आप लोग थोड़े फंसे हैं, विपदा में तो हम फंसे हैं!”
“हमको इल्ज़ाम मत दीजिये विधायक जी, ये सब सिचवेशन आपके प्रिय स्वामी जी का खड़ा किया हुआ है।” उमाकान्त जी बोले, “आप तो अभी बस ये सोचिये, इस परिस्थिति से बाहर कैसे निकलें? तब तक हम तो शेर-ओ-शा’इरी का लुत्फ़ लेंगे!” एक ज़ोरदार ठहका कक्ष में गूंज उठा मगर विधायक और स्वामी जी के चेहरे पर बारह बजे हुए थे।
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‘बिल्ली के भाग से छींका फूटा’ वाली बात हो गयी थी। सत्ताधारियों के इस मुश्किल वक़्त में विपक्ष के नेताओं को सरकार को बदनाम करने का एक बड़ा हथियार मिल गया था। अतः विपक्षी नेताओं ने सरकार के विरुद्ध तरह-तरह के उलटे-सीधे बयान देने शुरू कर दिए।
“सरकार स्वामी जी के साथ मिली हुई है।”
“सरकार बिकी हुई है।”
“सरकारी नेता और मन्त्रीगण स्वामी जी के काले कारनामों में बराबर के भागीदार हैं।”
“विधायक दिनेश शर्मा चोर है।”
“स्वामी जी और विधायक को कठोर सजा दी जाये। दोनों को आजीवन कारावास दिया जाये।”
“स्वामी जी ने कई वर्षों तक मेनका जी के साथ जबरदस्ती की।”
“स्वामी और विधयक में ग़ैरत बाक़ी है तो इन्हें चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए।”
ये सब बातें आग में घी का काम कर रही थीं। जिसे मीडिया एन्कर नमक-मिर्च लगाकर प्रस्तुत कर रहे थे। चैनलों की टी.आर.पी. बढ़ गई थी। लोग फ़िल्मों और टी.वी. सीरियल से ज़ियादा इन ख़बरों में दिलचस्पी लेने लगे थे कि स्वामी जी, विधायक दिनेश शर्मा जी और अन्य फंसे हुए नेताओं का क्या होगा? क्या मेनका को इन्साफ़ मिलेगा? मेनका कैमरे के आगे रोते-रोते अपनी दास्तान सुनाती थी और खुद को बेबस, लाचार बताती थी। जिससे आम जनमानस में उसके प्रति सहानुभूति उमड़ आई थी और स्वामी जी तथा सरकार के ख़िलाफ़ आक्रोश बढ़ता जा रहा था। दिनेश शर्मा के आवास पे लोगों द्वारा पथराव किया गया था। जिसमें उनके कुछ परिजन घायल भी हुए थे। उनके परिजनों की सुरक्षा की ख़ातिर प्रशासन ने पुलिसबल विधयक जी के घर के बाहर तैनात किया हुआ था।
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अगले दो हफ़्ते भी इसी रहस्य रोमांच में निकल गए थे। रोज़ नई-नई बातें सामने निकल कर आ रही थीं। अत: राजनीतिज्ञों द्वारा तुरंत आनन-फानन में एक आपात मीटिंग बुलाई गई। जिसमे स्वामीजी, विधायक दिनेश शर्मा जी, बलात्कार की शिकार युवती और पक्ष-विपक्ष के फंसे हुए तमाम मंत्रिगण मौजूद थे। जिन्हें मीडिया ने लोकतंत्र का कर्णधार बताया था। बैठक में क्या-क्या कार्यवाही हुई और क्या-क्या फैसले लिए गए, यह उस रात तक परम गोपनीय था, जिस दिन मीटिंग आयोजित की गई। आम-आदमी तक अपना ज़रूरी काम छोड़कर समाचार चैनलों से चिपका हुआ था कि आगे क्या होने वाला है? मीटिंग में आये सब लोगबाग उस पाँच सितारा होटलनुमा बंगले में ही खा-पीकर सो गए थे।
मीडिया के दर्जनों कैमरे जगह-जगह तैनात थे। जो सबसे तेज़, पहले मैं, की तर्ज़ पर मीटिंग शुरू होने के पहले से ही जमा थे। ठीक 24 घण्टे बाद अगली सुबह वातावरण पूरी तरह से बदला हुआ था। नित्य क्रियाओं से निवृत होकर, नहा-धोकर, नाश्ता-पानी करने के बाद खादीधारियों ने कैमरे के सामने निम्नलिखित बयान दिएे—
“देशवासियों आपको यह बता दें कि मींटिंग में क्या-क्या बातें खुलकर आईं?” विधायक के किसी चमचे ने सबसे पहले माइक पे कहा, सबसे पहली बात तो यह है कि ये हमारे आदरणीय विधायक दिनेश शर्मा जी को और परम पूजनीय स्वामी जी को बदनाम करने की एक साजिश थी।”
“महज़ घटिया पब्लिसिटी स्टंट था।” चमचे के पीछे से माइक पर आते हुए एक मंत्री जी सिगरेट का धुँआ उड़ाते हुए वाक्य पूरा किया।
“स्वामीजी की पीठ पीछे सारे ग़ैर क़ानूनी काम हो रहे थे,” दूसरे मंत्री ने पान की पीक थूकी।
“जिन कार्लगर्ल्स ने नेताओं के नाम उछाले, वह सब पाकिस्तान की सर्वोच्च गुप्तचर संस्था आई० एस० आई० के लिए काम करती थीं,” कहते हुए तीसरे मंत्री ने गुटके का पूरा पाउच मुंह में उड़ेल लिया।
“पूरा विश्व जान ले की संसद के बाहर पक्ष-विपक्ष एक है। भले ही संसद के भीतर, हमारे बीच कितने ही मतभेद क्यों न हों?” चौथे ने मुट्ठी भींचकर दांत फाड़ते हुए फ़रमाया और ऊँचे सुर में चिल्लाया, “हम सब साथ-साथ …”
“लोकतंत्र ऐसी बेहूदा हरकतों से टूटने वाला नहीं है,” पीछे से एक उतावले नेता ने औरों को धकियाते हुए कैमरे के आगे अपना थोबड़ा चमकाते हुए कहा।
इन सब बयानों से ज्यादा चौंका देने वाला सीन, जो सभी समाचार चैनलों ने प्रमुखता से दिखाया, उसे देख सब लोग आश्चर्यचकित हैं। स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए सार्वजनिक रूप से उस युवती मेनका को ‘बहन’ कहकर संबोधित किया और राखी भी बंधवाई, जिस युवती पर कल तक स्वामी जी के द्वारा बलात्कार का आरोप लगा था। इसके उपरांत दोनों भाई-बहन एक ही कार में बैठकर हाथ हिलाते हुए विदा हुए।
“यानि बेकार में पिछले डेढ़-दो माह से हल्ला-गुल्ला हो रहा था।” घटना को कवरेज करता हुआ एक पत्रकार बोला।
“यह लोकतंत्र की महान जीत है!” कार के ओझल हो जाने के उपरांत उसी पत्रकार के समक्ष खड़े एक अन्य पत्रकार ने जवाब दिया था। जिसे सुनकर अनेक पत्रकार हैरान थे कि, ये लोकतन्त्र की प्रशंसा है या मज़ाक़?
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