*स्वर्गीय श्री जय किशन चौरसिया : न थके न हारे*
स्वर्गीय श्री जय किशन चौरसिया : न थके न हारे
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श्री जय किशन चौरसिया सुंदर लाल इंटर कॉलेज के पुराने और अच्छे अध्यापकों में से एक थे । शुरुआत के दशक में जो नवयुवक विद्यालय के साथ अध्यापन कार्य के लिए जुड़े और अंत तक जुड़े रहे ,जय किशन चौरसिया जी उनमें से एक थे । कर्तव्यनिष्ठ, कार्य के लिए समर्पित ,अत्यंत उत्साही तथा बुद्धि चातुर्य से भरपूर ।
1964 – 65 के विद्यालय के एक ग्रुप-फोटो में उनका सुंदर चित्र देखने को मिलता है । यह मृत्यु से साढ़े पाँच दशक पूर्व शिक्षा-क्षेत्र में उनके योगदान के प्रारंभिक वर्ष कहे जा सकते हैं ।
श्री जय किशन जी से मेरा संपर्क तब आया ,जब मैंने 1970 में सुंदर लाल इंटर कॉलेज में कक्षा 6 में प्रवेश किया । इस तरह कक्षा 6 से कक्षा 12 तक एक विद्यार्थी के तौर पर मैंने अपने विद्यालय के अध्यापक के रूप में जय किशन चौरसिया जी को नजदीक से देखा । उनमें आलस्य का सर्वथा अभाव था । कार्यकुशलता उनके रोम-रोम में बसी हुई थी ।
जब विद्यालय से जय किशन चौरसिया जी रिटायर हो गए ,उसके बाद भी मेरा संबंध उन से बना रहा । वह प्रायः दुकान पर आते थे और कुछ जरूरी कागजों पर मेरे हस्ताक्षर लेते थे । मुझे उनके कार्य को तुरंत करते हुए बहुत प्रसन्नता रहती थी । वह हिसाब-किताब के बहुत पक्के थे । जब विभाग पर उनका कुछ रुपया निकल रहा था ,तब उन्होंने लंबी-चौड़ी लिखा-पढ़ी की थी और अपना अधिकार प्राप्त किया था। सारी कहानी उन्होंने मुझे दुकान पर बैठकर बताई थी और कहा था कि एक अध्यापक को जो उसका अधिकार है ,उसके लिए संघर्ष करना ही चाहिए । मैंने उनके संघर्ष ,परिश्रम तथा लक्ष्य के प्रति उनके समर्पित भाव से लगे रहने के लिए उनकी प्रशंसा की । जय किशन चौरसिया जी ने बुढ़ापे में कठिन लड़ाई लड़ी थी और जीते
थे ।
जब कुछ वर्ष पूर्व उनकी पत्नी का देहांत हुआ और मुझे समाचार मिला तब मैं उनकी पत्नी के अंतिम दर्शनों के लिए इंदिरा कॉलोनी रामपुर में उनके निवास पर गया था। जय किशन चौरसिया जी इस सदमे से बुरी तरह टूट गए थे लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी । वृद्धावस्था की अधिकता के बाद भी वह बिना किसी अन्य व्यक्ति की मदद के बाजार में चलते-फिरते थे, मेरी दुकान पर आते थे और खुशी के साथ दिल भर कर बातें करते थे । उनकी अटूट जीवन शक्ति के लिए मैं उनको हमेशा याद करूंगा ।
ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत दो प्रकार के लोग होते हैं । एक वह जो व्यक्ति के हाथ की रेखाओं को पढ़कर उसका भविष्य बताते हैं। दूसरे प्रकार के लोग जन्म के समय के आधार पर जो जन्मपत्री बनती है अथवा जन्मकुंडली बनाई जाती है, उसका विश्लेषण करके भविष्य की जीवन की सारी घटनाओं के बारे में बताते हैं । जय किशन चौरसिया जी तीसरे प्रकार के भविष्यवक्ता थे । वह माथे को पढ़कर व्यक्ति के भविष्य को बताने वाले ज्योतिषी थे । मुझे इस बात का कभी भी पता नहीं था कि उनका ज्ञान इस दिशा में भी है । एक बार जीवन के अंत में वह जब मेरी दुकान पर आए और मेरे माथे को गौर से देखने लगे तब मैंने पूछा “क्या देख रहे हैं आप ? ”
कहने लगे “माथा देख रहा हूं और भविष्य पढ़ रहा हूं । ”
उत्सुकता तो भविष्य को जानने की सब में होती है । मैंने कहा “बताइए । ”
जय किशन चौरसिया जी ने मेरे माथे को पढ़कर जो बात बताई ,उसका मुझे भी पता नहीं था । बाद में उनकी बात सत्य सिद्ध हुई । तब मैंने सोचा था कि फिर कभी उनसे मिलना होगा तो इस विद्या के बारे में चर्चा करूंगा और सीखने का संयोग बना तो सीख भी लूंगा । लेकिन फिर न उनका मेरे पास आना हुआ और न इस विद्या की कोई चर्चा हो पाई ।
उनकी स्मृति को शत-शत नमन ।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451