स्वयं को संत कहते हैं,किया धन खूब संचित है। बने रहबर वो’ दुनिया के
स्वयं को संत कहते हैं,किया धन खूब संचित है।
बने रहबर वो’ दुनिया के, किया बस नाम अर्जित है। १
करें वादे नये नित ही, लुभाते आम जनता को,
चुनावों में हमेशा ही, तभी तो जीत निश्चित है। २
सतत जो जन करे महनत, रहे वो मुफलिसी में ही,
दुखों में जी रहा जीवन,सदा सुक्खों से वंचित है।३
नहीं है ज्ञान छंदों,नई गंगा बहाते हैं ,
चुटकुले मंच पर पढ़ते,कहें नव छंद सर्जित है।४
नजर उनकी लिफाफे पर, रखे ज्यों मीन पर साधक,
वही कहते सुकवि खुद को, बहुत यह बात चर्चित है ।५
सदा करता बड़ाई निज,मियाॅ मिट्ठू उसे कहते,
हवा में बात खुद करता, कहे यह बात वर्जित है।६
सभी को इस जमाने की ये’ बातें दे रहीं चिंता,
नहीं कोई भी’ हल दिखता,अटल भी आज चिंतित है।७