स्वयंभू
वह कहते हैं–
मैं प्रचारक,
बुद्धिमानी किसी से कम नहीं हूं,
दूसरों की बात क्यों मानूं,
स्वयंभू किसी की बात कभी मानी है <
उसके,
ढोल की लय,
ताल भी अपना है,
लोक लय को कौन फुछे <
ताल–बेताल वाले किसी की बात कभी मानी है <
उसे,
करोड़ों की बोली,
संस्कृति होने की बात मालुम है,
इस पर बेईमान उसकी जारी है,
आत्मकेन्द्रित धून वाले किसी की बात कभी मानी है <
उसे मालुम हैं–
प्राचीन संस्कृति,
भाषा के नाम पर खेती होती है,
इसिलिए खूद और परिवार इसमे तिरपिट है,
चांदी कटाई मे रमने वाले किसी की बात कभी मानी है <
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)