स्वप्न
मेरे हाथो में
आज रात मेरी लाश थी
समझ ना पा रहा था
रोऊँ अपनी मौत पर
या
मना लूं जश्न आज
फंतासी दुनिया छोड़ने का
मैं मर चुका था खुद में
बुनियाद हिल गयी थी, धैर्य की
आत्मा भी मेरी कापने लगी थी अब
उसने अपनी नहीं खोली
इस डर से
मैं मर ना जाऊं
और मैं आखें बन्द ना किया
कहीं वो फिर साकार ना हो जाये
मेरा स्वप्न बनकर।