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2 May 2024 · 1 min read

स्वप्न

मेरे हाथो में
आज रात मेरी लाश थी
समझ ना पा रहा था
रोऊँ अपनी मौत पर
या
मना लूं जश्न आज
फंतासी दुनिया छोड़ने का
मैं मर चुका था खुद में
बुनियाद हिल गयी थी, धैर्य की
आत्मा भी मेरी कापने लगी थी अब
उसने अपनी नहीं खोली
इस डर से
मैं मर ना जाऊं
और मैं आखें बन्द ना किया
कहीं वो फिर साकार ना हो जाये
मेरा स्वप्न बनकर।

Language: Hindi
57 Views
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