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18 Oct 2023 · 2 min read

नज़्म

वही एक दुःख भरी शायरी,
जिसे सुनाकर रोते थे तुम।
जिसको सुनकर रोते थे हम।
बहुत दिनों से सुनी नहीं है
नहीं! आँख में नमी नहीं है
तुम्हें याद है! तुमने आखिर
कब मुझसे “वो नज़्म” कही थी ?
वही नज़्म, जिसमें कहता है
शायर, “कुन ही काफी नई!
देखभाल भी कर बंदों की।”
या फिर गीत “भरत भूषण” का,
जिसमेें “बाँह चाह का अंतर”
आँख तुम्हारी भर देता था।
और, “अमृता की वो कविता
जिसमें फिर मिलने का दावा…”
कैनवास पर किसी रेख सी,
मेरे मन में खींची हुई है।

लगभग समसामायिक शायर
तुमको ऐसे रटे हुए थे,
जैसे कोयल, “पंचम सरगम।”
“शिव बटालवी” का इंटरव्यू,
हमने कितनी बार सुना था!
तुम्हें याद है ?
आँखें मूंदे, वो ऊँचा स्वर!
“रंगा दा हि नां तस्वीरा है।”
वो भोला चेहरा, मेरा कहना-
“शिव मेरे प्रेमी होते, यदि
तब होती मैं, या अब होते वो।”
और तुम्हारा हँसकर कहना,
“मैं ही शिव हूँ! पुनर्जनम है।”
तुम्हें याद है ?

देर रात “चकमक, “सारंगा” प्रेम कहानी
तुमने मुझे सुनाकर बारिश करवाई थी।
मन भीगा था
“धर्मवीर के चंदन” से, हम “ओशो” तक
कैसे जाते थे, तुम्हें याद है ?
“कितना आत्ममुग्ध रहती हो!”
तुम, मुझसे अक्सर कहते थे।
और कभी हम दोनों
मिलकर अपनी ही कमियाँ गिनते थे।
वो सब कितना सहज सुखद था
बोलो! था न ?

ये सब जो मैं याद कर रही,
याद तुम्हें भी आता होगा !
देर रात मेरे नंबर पर,
ध्यान तुम्हारा जाता होगा!
गर, हाँ! तो फिर फोन लगाओ।
अब भी रात जागती हूँ मैं।
तुम ही छलके हो आँखों से,
जब भी, कुछ भी पढ़ती हूँ मैं।
तुम कहते थे “दवा किताबें।”
मैं कहती “संवाद शहद हैं।”
तुम्हें याद है ?

अब, टेबल पर कई किताबें,
और जुबान पर कड़वापन है।
कहने को हम अलग हो गए,
मन में कितना अपनापन है।
अब तो देर रात मैं अक्सर,
“मैं” से “तुम” भी हो जाती हूँ।
खुद ही खुद को सुन लेती हूँ।
खुद ही खुद से बतियाती हूँ।
इस एकल अभिनय नाटक का
यूँ तो अंत सुखद रहता है।
लेकिन खुद से संवादों में,
उतना शहद नहीं मिलता है।
यूँ तो हम अब एक नहीं है।
दुनिया हमको को दो गिनती है।
जिसे दिया है सबने मिलकर,
इक तस्वीर साथ रहती है।
वो तस्वीर बदन छूती है,
मैं भी केवल तन होती हूँ।
रात गए रौशनी ढले जब,
तब उसके रंग छुप जाते हैं।
और मेरी आँखों के भीतर,
रंग तुम्हारे मुस्काते हैं।
उस पल तुमको दोहराती हूँ,
फिर मैं कविता हो जाती हूँ।

सोच रहीं हूँ, अहम छोड़कर
तुमको अगर मना पाती, तो ?
सोच रहीं हूँ, वहम छोड़कर
यदि तुम मुझको सुन लेते, तो ?
क्या तुम भी ये सोच रहे हो ?
क्या अब भी हूँ याद तुम्हें मैं…. ?

वही एक दुःख भरी कहानी…..!
शिवा अवस्थी

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