स्वप्न केवल स्वप्न बनकर हो गया बेकार तो (नवगीत)
नवगीत–4
स्वप्न केवल
स्वप्न बनकर
हो गया बेकार तो ।
एक पग तुमको
बढ़ाना है
दृढ़ विश्वास रखकर
हारना क्यों
चाहता तू
लक्ष्य के नज़दीक आकर
मानता हूँ
थक गया पर
रुक न धीरे ही चलाचल ,
लड़ गया जब
तू अँधेरों से
न मानी हार तो ।
दर्द तो पाता
मनुज है
दर्द से आश्वस्त हो ले
एक कोने में
कहीं पर
दर्द हो तो खूब रो ले
किन्तु तेरा
जीतने का
प्रण न हो कमज़ोर क्योंकि
त्याग सुख को
सह लिया जब
दुर्दिनों की मार तो ।
सुन यही
अवलेहना तो
पुष्प की माला बनेगी
जीतना तेरा
हुआ क्या
सारी दुनिया चल पड़ेगी
राह पे
तेरे चलेंगे
कारवाँ के कारवाँ जब
फूल बनकर
खिल उठेंगे
दुखभरे अंगार तो ।
–रकमिश सुल्तानपुरी