स्वप्न एक रेत का टीला
स्वप्न एक रेत का टीला
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स्वप्न की आयु
रेत के टीले सी होती है
दूर से जितना सुंदर दिखते हैं
जरा सा भी पास आने पर
तनिक सा हाथ स्पर्श करते ही
बिखर और ढ़ेर हो जाते हैं
ज्यों के त्यों पल भर में
मानव मन व्यथित विचलित हो
ताकता रहता है एकाग्र हो कर
रेत के पड़े हुए ढ़ेर की तरफ
जो कुछ देर पहले तक
कितना ही मनोरम और रमणीय
दिखाई देता था उस असितत्व में
और ढहने मात्र से अब वो सुंदर टीला
व्यर्थ और उद्देश्यहीन सा हो कर
अग्रणीय पथ पथभ्रष्ट हो कर
निढ़ाल और ढ़ीला ढ़ीला सा हो गया है
जैसे पश्चाताप के आँसुओं के साथ
रो रहा हो अपनी क्षणभंगुर आयु पर
और ऐसी परिस्थितियों भरे नसीब पर
और किसी शैली में कर रहा हो चिंतन
क्यों उसकी नाजुक सी प्यारी देह
स्वार्थी,लोभी,क्रोधी,आत्मकेंद्रित
मनसीरत इंसानों के संपर्क मे आई….।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)