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4 May 2024 · 1 min read

पगडंडियां

पगडंडियां

रात चांदनी
गीत मधुर थे
नैनों से नैन मिले थे
पर मूक अधर थे
यूँ ही जुड़ गई थी
मन की पगडंडियां

मन की रुत बदली
बसंत बहार ने मुख मोड़ा
किसी मोड़ पर जा छोड़ा
उस वीरान शहर में
उलझ गई थी
मन की पगडंडियां

सुख को तोला
रचा तराजू
सुख की बंदरबांट करी
खिसियाई बिल्ली सी
नोंच खसोट गई
मन की पगडंडियां

पाला पोसा
अरमान किये थे पूरे
उस अम्मा को छोड़ चले थे
हाय अकेला
तपे तवे पर
ज्यूँ करवट लेती
मन की पगडंडियां

Language: Hindi
19 Views
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