स्वच्छंद प्रेम
स्वच्छंद प्रेम शर्तों पर नहीं किया जाता,
न किया जाता है अमीर-गरीब,
जात-पात के बंधनों में बंध कर।
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यह तो एक नवीन और निश्चल अनुभूति होती है,
जो हृदय से निकलकर हृदय तक पहुंचती है,
जिसमें दो अनमोल रिश्ते, बिना किसी दुराव,
बिना किसी नियम-शर्तों के जुड़ते हैं।
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स्वच्छंद प्रेम में दो हृदय का होना आवश्यक है,
एक हृदय जो दूसरे की अनुभूति का अनुभव कर सके,
बिना किसी लालच उम्मीद के,
सर्वस्व न्यौछावर करने का मादा रखे।
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यही प्रेम किया था मीरा ने श्याम से,
भीलनी ने राम से,
सीरी ने फरहाद से, लैला ने मजनू से,
जिसमें देना प्यार का आदर्श होता था,
न कि कुछ पाना।
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वास्तव में पाना स्वच्छंद प्रेम का आधार कतई नहीं है,
देना और प्रेम करने वाले का भला चाहते रहना,
स्वछंद प्रेम की मूलभूत आवश्यकता है।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।