स्पर्श
पारस करे स्पर्श तो
कुधातु भी कुंदन बने।
चिता की राख शम्भु को,
स्पर्श कर चंदन बने।
स्पर्श राम ने किया,
पाषाण से नारी बनी।
स्पर्श कृष्ण का हुआ,
तो कुब्जा आभारी बनी।
माथे पर हो स्पर्श तो,
आशीष अभिनन्दन बने।
माता पिता के चरण का,
स्पर्श इक वंदन बने।
भगनी को भ्रात जब करे,
स्पर्श हो जाये दुआ।
आलोक पसरे ज्ञान का,
स्पर्श सतगुरु का हुआ।
स्पर्श करते नैन तो,
दर्शाते मूक बैन को।
अधर करें स्पर्श तो,
उड़ाये मन के चैन को।
स्पर्श वैद्य जब करे,
तो रोग में आराम हो।
स्पर्श कामिनी करे,
बदन में उदय काम हो।
स्पर्श कर रस चूसता,
प्रसून से मकरंद है।
स्पर्श स्वर व्यंजन किया,
‘सृजन’ बना तब छंद हैं।