“स्नेह सभी को देना है “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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शालीनता ,माधुर्यता के परिधियों में
बातें अच्छी लगतीं हैं !
संवाद टिप्पणिओं की भाषाएँ सबके
हृदय में बस जातीं हैं !!
गर्म हवाओं के झोंकों से विचलित
मन करने लगता है !
फिर सावन की शीतल फुहार से
मन मुदित हो जाता है !!
वारिस की बूंदों के छींटे सब जगह
एक बराबर पड़ते हैं !
सबको शीतलता से सिंचित करके
दुःख सबके वे हरते हैं !!
हमअपनी बातों से लोगों के दिल में
अपना स्थान बनाते हैं !
भाषा विकृतिओं से लोगों को क्षण में
आहत कर जाते हैं !!
श्रेष्ठों को सम्मान चाहिए अभिनन्दन
का पूरा एहसास चाहिए !
समतुल्यों को सम्बोधन में आभार और
छोटों को भी प्यार चाहिए !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल “