स्त्री/ पुरुष
रोहिणी के आफिस में आज वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन उसी के जिम्मे था ,पूरे दफ्तर में उसकी कार्यकुशलता के चर्चे थे,थक कर शरीर चूर था परन्तु बेस्ट वर्कर आफ द ईयर का अवार्ड और तारीफों के पुलों ने जैसे पंख दे दिये थे।
सबकी बधाइयाँ स्वीकारते थोड़ी देर भी हो गई थी,घर के दरवाजे में प्रवेश करते ही गृह स्वामी का स्वर सुनाई दिया आज भूखा मारने का इरादा है क्या!
ट्राफी को मेज पर रख पल्लू कमर में खोंस सीधी रसोई में अवतरित हो गई मनोनुकूल भोजन सबको खिला कर ही कपड़े बदलने का मौका मिला,मुँह हाथ धो कर सोचा कि सीधे नींद के आगोश मे समाहित हो जाए पर रोहिणी तो धर्म ग्रंथों मे लिखे श्लोक पर
हूबहू उतरती है
कार्येषु मन्त्री करणेषु दासी
भोज्येषु माता शयनेषु रम्भा
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री।
सोचने को मजबूर हूँ कि क्या कोई ऐसा श्लोक पुरुषों के चरित्र निर्धारण के लिए भी किसी ग्रंथ में लिखा गया है!!!!!!!!!!
अपर्णा थपलियाल “रानू”