# स्त्री # कविता
स्त्री तुम मोह माया
तुम ममता प्यार
तुम हो दया,क्षमा
तुम कोमल दुलार
तुम सरल कुशल
तुम संयमी चरित्र
भद्र,शिष्ट ,स्थिर
तुम जननी पवित्र
तुम शक्ति लज्जा
तुम धीरज करुणा
तुम हो सहनशील
तुम शीतल तरुणा
तुम साहस,त्याग
तुमराग,तुमश्रृगांर
तुम होप्रेम प्रतीक
तुम हो अंगार
तुम हो अब र्निर्भया
करो नूतन र्निर्माण
किसी को हक् नहीं
तुमसे मांगे प्रमाण
स्वलिखित डॉ.विभा रजंन(कनक)